आगरा शहर यमुना जी के तट पर स्थित है। यह शहर चमड़े की उद्योगों और पर्यटन के लिए प्रसिद्ध है। विश्व प्रसिद्ध स्मारक ताजमहल (तेजो महल) यहीं स्थित है। आगरा प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 300 किलोमीटर तथा देश की राजधानी दिल्ली से 200 किलोमीटर की दुरी पे स्थित है। यह शहर मुग़ल काल में मुग़लों की राजधानी हुआ करती थी। भारत पर मुस्लिम आक्रमणों से पहले विभिन्न हिंदू राजवंशों के तहत यह एक महत्वपूर्ण स्थान था, लेकिन इसका इतिहास स्पष्ट नहीं है। 17वीं शताब्दी के अब्दुल्ला नामक इतिहासकार ने कहा कि सिकंदर लोदी के शासनकाल से पहले यह एक गांव था। मथुरा के राजा आगरा किले का इस्तेमाल जेल के रूप में किया करते थे।
प्रदेश : उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh -U.P.)
मुख्यमंत्री : योगी आदित्यनाथ ( मार्च 2017 से....)
प्रदेश के मुख्यमंत्री : योगी आदित्यनाथ
यह मंदिर राजस्थान के प्रसिद्ध खाटू श्याम मंदिर से प्रेरित है और यह उत्तर प्रदेस का सबसे बड़ा खाटू श्याम जी का मंदिर है। यह मंदिर लगभग १२०० गज में बना हुआ है। यह मंदिर जेओनी मंडी सिविल लाइन्स में स्थित है। इस मंदिर में खाटू श्याम जी का सिंहासन १०० किलोग्राम चाँदी से तैयार किया गया है। इस मंदिर का निर्माण २०१२ में प्रारम्भ हुआ था और २०१८ में यह मंदिर दर्शनों के लिए खोला गया। इस मंदिर में राजस्थान के गुलाबी पत्थरों का प्रयोग हुआ है।श्याम बाबा के मुख्य मंदिर के एक तरफ हनुमान जी का मंदिर और दूसरी तरफ गणेश जी का मंदिर भी स्थापित है।यह मंदिर ३ मंज़िलों का है।
इस मंदिर का इतिहास लगभग 5000 वर्ष पुराना है। ऐसी मान्यता है की जब श्री विष्णु जी ने कृष्ण रूप में धरती पे अवतार लिया था तो श्री कृष्ण के बाल स्वरुप के दर्शन करने की कामना के साथ महादेव कैलाश से बृज आये थे। तब यहाँ यमुना जी के किनारे एक शमशान हुआ करता था जहाँ महादेव ने साधना की थी एवं श्री कृष्ण के बाल स्वरुप के दर्शन उपरांत अपनी कामना पूर्ण होने के कारण यहाँ एक शिवलिंग की स्थापना मनकामेश्वर महादेव के रूप में की। इतिहास के अनुसार इस मंदिर का निर्माण मध्यकालीन इतिहास के दौरान राजा मान सिंह ने कराया था और इसका जीर्णोद्धार बाद में अकबर ने कराया था। हर शिवालय की तरह यहाँ भी सावन के महीने में भक्तों की अत्यधिक भीड़ दर्शनों के लिए आती है।
हनुमान जी का यह मंदिर लगभग 500 वर्ष पुराना है । उस समय में यहाँ मुग़लों का साम्राज्य हुआ करता था। मंदिर के इस नाम के पीछे बड़ी दिलचस्प कहानी है। कहा जाता है की जहाँ आज मंदिर है वहीं पास में एक चौकी हुआ करती थी। वहां एक रामभक्त सिपाही की ड्यूटी होती थी। वह सिपाही ड्यूटी से हटकर राम कथा कहने चला जाया करता था। जिसकी शिकायत किसी सिपाही ने कोतवाल से कर दी। शिकायत मिलने पर कोतवाल उसकी पड़ताल करने रामकथा स्थल पर गया तो उसे वह वहां रामकथा कहता हुआ मिला, उसके बाद वह कोतवाल उस चौकी पे जांच करने पंहुचा तो वह सिपाही वहां भी ड्यूटी देते हुए मिला। यह देख कर कोतवाल आश्चर्यचकित हो गया एवं फिर उस सिपाही से इसके बारे में पूछा। सिपाही ने कहा की वह तो रामकथा कहने में व्यस्त रहता है तथा ड्यूटी रामभक्त बजरंगबली करते हैं। चूँकि वह सिपाही पैरों से थोड़ा लाचार था इसीलिए इस मंदिर का नाम लंगड़े की चौकी के नाम पर पड़ गया। यहाँ हनुमान जी का सिंहासन संगमरमर का बना हुआ है। हर हनुमान मंदिर की तरह इस मंदिर में भी प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी को चोला चढाने के लिए भक्तों की अपार भीड़ एकत्र होती है। ऐसी भी मान्यता है की भक्तों की यहाँ मांगी गई मान्यता जब पूर्ण होती है तो भक्त यहाँ फूलों का बंगला सजवाते हैं।यह मंदिर आगरा के सिविल लाइन्स इलाके में स्थित है।
यह मंदिर यमुना जी के तट पर स्थित है एवं महादेव जी को समर्पित है। यह मंदिर लगभग 10,000 वर्ष पुराना है। इस मंदिर में दो शिवलिंग स्थापित हैं। ऐसी मान्यता है की यह दोनों शिवलिंग भगवान परशुराम और उनके पिता ऋषि जमदग्नि के द्वारा स्थापित किये गए हैं। त्रेता युग में भगवान परशुराम एवं ऋषि जमदग्नि कैलाश पर भगवान शिव की तपस्या की एवं तपस्या के फ़लस्वरूप दोनों ने भगवान शिव को अपने साथ चलने के लिए कहा। तत्पश्चात भगवान शिव ने उन्हें अपने प्रतीक स्वरुप दो शिवलिंग प्रदान किये, जिन्हे दोनों पिता पुत्र अपने साथ अग्रवन (वर्तमान का आगरा) स्थित रेणुका धाम को ले चले। परन्तु वह दोनों रेणुका धाम (वर्तमान का रुनकता) से कुछ दूर पहले ही कुछ देर के लिए शिवलिंग को रख दिए जिससे वह उसी स्थान पे स्थापित हो गए। दोनों ने शिवलिंग को वापस से उठा कर ले जाने के बहुत प्रयत्न किये पर सफल नहीं हुए इसलिए शिवलिंग की स्थापना पुरे विधि विधान से उसी स्थान पर कर दी। चूँकि यह दोनों शिवलिंग कैलाश से आये थे और स्वयं कैलाशपति के प्रतीक स्वरुप थी इसीलिए इस मंदिर का नाम भी कैलाशपति महादेव मंदिर पड़ा।श्रद्धालुओं ने यहाँ आस पास धर्मशालाओं का निर्माण भी कराया है। इस मंदिर से जुडी एक और रोचक कहानी है। यहाँ पर हर माह के तीसरे सोमवार को सार्वजनिक अवकाश रहता है और यह आदेश अंग्रेज अफसर के आदेशानुसार होता है जोकि 130 वर्ष पूर्व दिया गया था।कहा जाता है की इस क्षेत्र में अफसर की पत्नी खो गई थी जो बहुत ढूंढने पर भी नहीं मिलीं तो उस अफसर ने महादेव से प्रार्थना की और फिर वो मिल गईं।और तभी उस अफसर ने सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की जो आज तक घोषित है।
यह मंदिर आगरा के प्रसिद्ध शिव मंदिरों में से एक है और यह आगरा शहर के एक कोने पे स्थापित है। इस मंदिर का इतिहास लगभग 900 वर्ष पुराना है। इस मंदिर का शिवलिंग चमत्कारी है जो कि दिन में तीन बार अलग अलग रंग में प्रतीत होते हैं। प्रातः की आरती के समय सफ़ेद, दोपहर में नीला और संध्या आरती के समय गुलाबी रंग के प्रतीत होते हैं। ऐसा कहा जाता है की एक बार एक सेठ जी माँ नर्मदा से शिवलिंग लेकर आ रहे थे। वह सेठ रास्ते में थकान होने से इसी स्थान पे विश्राम करने के लिए रुके तब उन्हें सपने में भगवान शिव ने दर्शन दिए एवं शिवलिंग को इसी स्थान पर स्थापित करने को कहा। प्रातः होने पर सेठ ने पहले तो शिवलिंग को लेके जाने की भरषक प्रयत्न किये पर अंत में भगवान शिव के आज्ञानुसार सेठ ने फिर शिवलिंग की स्थापना इसी स्थान पर की।हर शिवालय की तरह इस शिवालय में भी सोमवार को भक्तों की अत्यंत भीड़ एकत्र होती है एवं सावन के माह में तो भक्तों का ताँता ही लगा रहता है। सावन के माह में यहाँ मेले का आयोजन भी किया जाता है।यहाँ शिव जी के अलावा हनुमान जी, शनि देव एवं अन्य देवी देवताओ की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं।
यह मंदिर आगरा के प्रसिद्ध शिवालयों में से एक है। इस मंदिर का इतिहास मुग़ल काल का है। कहा जाता है की एक बार राजा मान सिंह अफगानी आदिवासियों से युद्ध के लिए गए थे परन्तु वह युद्ध समाप्त नहीं हो रहा था। इसी युद्ध के दौरान राजा मान सिंह को पहाड़ी पे एक पत्थर मिला जोकि शिवलिंग की तरह था। राजा मान सिंह उसको अपने शिविर में ले आये और अगले ही दिन मान सिंह युद्ध जीत गए। युद्ध विजय के पश्चात वह उस शिवलिंगनुमा पत्थर को अपने साथ ही ले आये और इस स्थान पे स्थापित करवाए। चूँकि उस समय उस स्थान के चारों तरफ रावल राजपूत रहा करते थे इसीलिए इस मंदिर का नाम रावली महाराज मंदिर पड़ा। इस मंदिर के चमत्कार की एक और कहानी प्रसिद्ध है। ब्रिटिश शाशनकाल में जब अंग्रेज़ रेलवे लाइन का निर्माण कर रहे थे तो उन्होंने इस मंदिर को हटाने की कोशिश की परन्तु वो इस मंदिर को हटाने में असफल रहे।अंग्रेजों ने बहुत कोशिशें की इस मंदिर को गिराने की परन्तु वो सफल नहीं। तत्पश्चात रेल की लाइन को उस मंदिर के मार्ग से हटा कर बिछाया गया। इस मंदिर में शिव जी के अलावा भगवान राम , बजरंग बलि , राधा-कृष्णा इत्यादि की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। यहाँ भी सावन के महीने में भक्तों की अपार भीड़ दर्शनों के लिए आती है और भोले बाबा से अपनी शुभेच्छाएं व्यक्त करके उन्हें पूर्ण करने की प्रार्थना करके जाते हैं। ऐसी मान्यता है की यहाँ सच्चे मन से मांगी गई शुभेच्छाएं भोले बाबा पूर्ण करते हैं।