"बाराबंकी" जिला उत्तर प्रदेश के मध्य अवध क्षेत्र में अयोध्या मंडल के पांच जिलों में से एक है। इस जिले के नामकरण के संबंध में कई प्राचीन कहावतें हैं। उनमें से सबसे लोकप्रिय यह है कि, इस पवित्र भूमि पर 'भगवान बाराह' के अवतरण के कारण, इस स्थान को 'बाणहन्या' के नाम से जाना जाने लगा, जो समय के साथ अपभ्रंश होकर बाराबंकी हो गया। जैसा कि कहा जाता है, प्राचीन काल में यह जिला सूर्यवंशी राजाओं द्वारा शासित राज्य का हिस्सा था, जिनकी राजधानी अयोध्या थी। यह जिला बहुत लंबे समय तक चंद्रवंशी राजाओं के शासन में भी रहा। ऐसी भी मान्यता है की पांडवों ने अपनी माता कुंती के साथ वनवास के दौरान कुछ समय यहाँ घाघरा नदी के तट पर बिताया था।
प्रदेश : उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh -U.P.)
मुख्यमंत्री : योगी आदित्यनाथ ( मार्च 2017 से....)
Siddheshwar Mahadev Temple - सिद्धेश्वर महादेव मंदिर
Baba Bhairavnath Temple - बाबा भैरवनाथ मंदिर
Sri Nageshwarnath Temple - श्री नागेश्वरनाथ मंदिर
Lodheshwar Mahadev Temple - लोधेश्वर महादेव मंदिर
Aushaneshwar Mahadev Temple - औशानेश्वर महादेव
Dhanokhar Hanuman Temple - धनोखर हनुमान मंदिर
Baba Bhairavnath Mandir - बाबा भैरवनाथ मंदिर
प्रदेश के मुख्यमंत्री : योगी आदित्यनाथ
जैसा की नाम से ही प्रतीत होता है की यह मंदिर महादेव को समर्पित है। यह बहुत ही प्राचीन मंदिर है जो की बाराबंकी ज़िले के सिद्धौर क्षेत्र में स्थित है। दिसंबर और जनवरी के माह में यहाँ बहुत विशाल मेला लगता है। कहा जाता है की अंग्रेजी शाशनकाल में काशी के जिलाधिकारी हरिशरण दास जी को इस शिवलिंग के बारे में स्वप्न आया था तत्पश्चात वो नौकरी से त्यागपत्र दे के यहाँ इस शिवलिंग की खोज में आ गए। शिवलिंग प्राप्त होने पर उन्होने उसी स्थान पर झोपड़ी डाल के महादेव की पूजा अर्चना प्रारम्भ कर दी। जैसे जैसे वह आस पास के लोगो को इसके बारे में ज्ञात हुआ वो लोग भी इस मंदिर पे पूजा करने के लिए आने लगे और बाद में सबके सहयोग से यहाँ एक मंदिर का निर्माण हुआ। ऐसी मान्यता भी है महात्मा बुद्ध जी भी यहाँ आये थे और लोगों को उपदेश दिए थे, जिस कारण इस मंदिर का नाम सिद्धेश्वर महादेव पड़ा। हर शिव मंदिर की तरह ही यहाँ भी सोमवार को भक्तों की ज्यादा भीड़ होती है।
यह मंदिर महाभारत कालीन बताया जाता है। ऐसी मान्यता है की इस शिवलिंग की स्थापना पांडवो की माता एवं भगवान श्री कृष्ण की बुआ कुंती ने की थी एवं उनके नाम पर ही इस मंदिर कुंतेश्वर महादेव पड़ा। यह मंदिर बाराबंकी जिले के किन्तुर में स्थित है। आज भी यह मान्यता है की इस मंदिर में महादेव की सर्प्रथम पूजा कुंती जी के द्वारा ही की जाती है। कहा जाता है कि एक समय माता कुंती और दुर्योधन की मां गांधारी अपने पुत्रों के विजय की कामना से पूजा करने इस स्थान पर पहुंची, तभी आकाशवाणी हुई कि कल सूर्योदय से पहले जो प्रथम शिवार्चन स्वर्ण पुष्पों से करेगा वह युद्ध में विजयी होगा। माता कुंती ने तब भगवान श्री कृष्ण की सहायता से पारिजात के स्वर्ण पुष्पों से प्रथम शिव अर्चना की और पांडवों को विजय प्राप्त हुई।
यह महादेव का बहुत ही प्राचीन मंदिर है। ऐसी मान्यता है की यहाँ स्थापित शिवलिंग स्वयंभू, अर्थात स्वयं प्रकट हुए है। यह प्राचीन मंदिर बाराबंकी जिले के पीरबाटन क्षेत्र में स्थित है। यहाँ स्थित मंदिर और धर्मशाला का निर्माण सन 1873 में सूरजकांत भट्टाचार्य द्वारा कराया गया था। हर शिवालय की तरह ही सोमवार को यहाँ भक्त महादेव के जलाभिषेक और दर्शन के लिए आते हैं। सावन में यहाँ श्रद्धालुओं की अत्यधिक भीड़ होती है। श्रद्धालुओं का मानना है की यह मांगी गई सभी मन्नते पूर्ण होती हैं।
ऐसा कहा जाता है कि, महाभारत काल से पहले, एक रात भगवान शिव, पंडित लोधेराम जी के सपने में आये। अगले दिन लोधेराम जी ने अपने खेत में सिंचाई करते समय एक गड्ढा देखा जहाँ से सिंचाई का सारा पानी धरती में समा रहा था। उन्होंने इसे ठीक करने की बहुत कोशिश की, लेकिन असफल रहे और घर लौट आये। रात में उन्हें स्वप्न में फिर वही मूर्ति दिखाई दी और आवाज़ सुनाई दी कि 'जिस गड्ढे में पानी की निकासी हो रही है, वह मेरा स्थान है, मुझे वहीं स्थापित कर दो, अगले दिन जब लोधेराम जी उस गड्ढे को खोद रहे थे, तो उनका औजार किसी कठोर वस्तु से टकराया और उन्हें सामने वही मूर्ति दिखाई दी, जिस स्थान पर उनका औजार मूर्ति से टकराया था, वहां से खून बह रहा था, यह निशान मूर्ति पर आज भी देखा जा सकता है। लोधेराम जी ने मूर्ति को खोदना जारी रखा, लेकिन मूर्ति के दूसरे छोर तक पहुंचने में असफल रहा, इसलिए उन्होंने इसे वैसे ही छोड़ दिया और उसी स्थान पर मंदिर का निर्माण किया। पंडित लोधेराम जी के नाम के कारण से यह मंदिर लोधेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह मंदिर बाराबंकी जिले के महादेवा गांव में स्थित है इसलिए इस मंदिर को महादेवा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी भी मान्यता है की पांडवों ने महाभारत के पश्चात यहां महायज्ञ किया था। यहाँ एक कुआँ आज भी स्थित है जिसे लोग पांडव कूप के नाम से जानते हैं। ऐसी भी मान्यता है की यहाँ का जल पीने से शरीर की कई बीमारियां ठीक हो जाती हैं। यहाँ स्थापित शिवलिंग पृथ्वी पर उपलब्ध 52 दुर्लभ शिवलिंगो में से एक है।
यह प्राचीन मंदिर बाराबंकी जिले के हैदरगढ़ तहसील में स्थित है। मंदिर के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। एक कथानुसार इस मंदिर की स्थापना एक मल्लाह ने की थी जिसका नाम औसान था जिस कारण इस मंदिर का नाम अवसानेश्वर महादेव पड़ा। एक अन्य कथा के अनुसार राजा जी को शाम के समय यहाँ पर प्रकाश दिखाई दिया जो की मंदिर की जगह से आए रहा था। चूँकि शाम को औसान भी कहा जाता है इसलिए इस मंदिर का नाम अवसानेश्वर महादेव पड़ा। कहा जाता है की पांडवों ने भी इस मंदिर में पूजा अर्चना की है। एक बार क्रूर मुग़ल शाशक औरंगज़ेब ने इस मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया परन्तु जब उसके सैनिकों ने शिवलिंग पर प्रहार किया तो शिवलिंग से खून बहने लगा और कई तरह सांप बिच्छू जैसे जीव जंतु उन सैनिकों को काटने लगे जिससे परेशान हो कर सैनिक मंदिर को छोड़ के भाग गए। सैनिकों द्वारा शिवलिंग पर किये गये प्रहार के घाव का निशान अभी भी मौजूद है।
धनोखर हनुमान जी का मंदिर बाराबंकी के धनोखर चौराहे पर स्थित है। हनुमान जी का यह मंदिर लगभग 300 वर्ष पुराना है। कहा जाता है की हनुमान जी यहाँ अपने भक्तों को दर्शन दे के उनकी मन्नतें पूर्ण करते हैं। कहा जाता है की इस मंदिर के नीचे एक लम्बी सुरंग भी है जो की प्राचीन नागेश्वरनाथ मंदिर तक जाती है। पूर्व काल में लोग नागेश्वरनाथ महादेव के दर्शन करने के पश्चात इस सुरंग के रास्ते हनुमान जी के दर्शन करने यहाँ आते थे। समय के साथ मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ और इस सुरंग को बंद कर दिया गया। मंदिर के पास ही एक तालाब भी स्थित है जिसमे स्नान करके संतगण भगवान की पूजा अर्चना किया करते थे। मंगलवार और शनिवार को इस मंदिर में बहुत भीड़ होती है क्यूंकि ऐसी मान्यता है की हनुमान जी अपने भक्तों के कई असाध्य रोगों को ठीक कर देते हैं और पूरी श्रद्धा से मांगी गई मन्नतें पूर्ण करते हैं।
बाबा भैरवनाथ जी का यह मंदिर लगभग ५०० वर्ष पुराना है और यह बाराबंकी जिले के मऊ गांव में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 1544 में महाराजा ब्रम्ह सिंह द्वारा कराया गया था। इस मंदिर में माँ काली की प्रतिमा भी स्थापित है और माँ काली के दर्शन एवं पूजा अर्चना के उपरांत ही बाबा भैरवनाथ जी के दर्शन किये जाते हैं। इस मंदिर में सच्चे मन से, पूर्ण श्रद्धा के साथ मांगी गई मुरादें पूर्ण होती है और मुरादें पूर्ण होने पर भक्त इस मंदिर में पत्थर अर्पित करते है।