"गोरखपुर" नाम संस्कृत के गोरक्षपुरम से आया है, जिसका अर्थ है गुरु गोरखनाथ का निवास, एक प्रसिद्ध तपस्वी जो नाथ संप्रदाय के एक प्रमुख संत थे। गोरखपुर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में पूर्वांचल क्षेत्र में राप्ती नदी के किनारे बसा एक शहर है। यह राज्य की राजधानी लखनऊ से 272 किलोमीटर पूर्व में स्थित है। यह गोरखपुर जिले, पूर्वोत्तर रेलवे क्षेत्र और गोरखपुर मंडल का प्रशासनिक मुख्यालय है। यह शहर गोरखनाथ मठ, गोरखनाथ मंदिर का घर है। शहर में 1963 से एक भारतीय वायु सेना स्टेशन भी है। रामायण और महाभारत जैसे हिंदू धार्मिक ग्रंथों का दुनिया का सबसे बड़ा प्रकाशक गीता प्रेस भी गोरखपुर में स्थित है जिसे 1926 में वहां स्थापित किया गया था।
प्रदेश : उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh -U.P.)
मुख्यमंत्री : योगी आदित्यनाथ ( मार्च 2017 से....)
Guru Gorakhnath Mandir - गुरु गोरखनाथ मंदिर
Gita Press - गीता प्रेस
Gita Vatika - गीता वाटिका
Vishnu Mandir - विष्णु मंदिर
Kali Mata Mandir - काली माता मंदिर
Jharkhandi Mahadev Mandir - झारखंडी महादेव मंदिर
Budhiya Mai Mandir - बुढ़िया माई मंदिर
Panchmukhi Hanuman Mandir - पंचमुखी हनुमान मंदिर
Baba Munjeswar Nath Mandir - बाबा मुंजेश्वर नाथ मंदिर
प्रदेश के मुख्यमंत्री : योगी आदित्यनाथ
जैसा की नाम से प्रकट होता है की यह मंदिर शिवावतारी भगवान गोरखनाथ को समर्पित है। कहा जाता है की त्रेता युग में माँ ज्वाला से खिचड़ी भिक्षा मांगते हुए भगवान गोरखनाथ यहाँ पहुंचे थे और यहाँ तपस्या की थी और तत्पश्चात यही समाधी ले ली थी। गोरखनाथ मंदिर की वर्तमान भव्यता का सारा श्रेय ब्रम्हलीन महंत दिग्विजयनाथ जी को और उनके उपरांत ब्रम्हलीन महंत अवैद्यनाथ जी को जाता है। वर्तमान में गोरखनाथ मठ के मठाधीश उत्तर प्रदेश के यशश्वी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी है। यह मंदिर लगभग 52 एकड़ के क्षेत्र में स्थापित है। देश में फैले नाथ संप्रदाय के विभिन्न मठ और मंदिरो की देखरेख यही से होती है। इस मंदिर में एक अखंड धुना प्रज्वलित है जो की मान्यता अनुसार भगवान गोरखनाथ द्वारा त्रेता युग में प्रज्वलित की गई थी और तबसे अनवरत प्रज्वलित है।
गीता प्रेस की स्थापना 1923 में जय दयाल गोयनका और घनश्याम दास जालान द्वारा हिन्दू धर्म के सिद्धांतों को बढ़ावा देने के लिए किया गया था। यह हिंदू धार्मिक ग्रंथों का दुनिया का सबसे बड़ा प्रकाशक है। अपनी स्थापना के बाद से, गीता प्रेस ने रियायती कीमतों पर गीता की 14 करोड़ से अधिक प्रतियां और रामचरितमानस की 10 करोड़ से अधिक प्रतियां प्रकाशित की हैं। गीता प्रेस ने 2022 में अपने सौ वर्ष पूरे किये।आर्ट गैलरी में अतीत और वर्तमान के प्रसिद्ध कलाकारों द्वारा 684 चित्रों में चित्रित श्री राम और श्री कृष्ण की लीलाएं हैं। श्री कृष्ण लीला की मेवाड़ी शैली की पेंटिंग सहित अन्य पेंटिंग भी प्रदर्शनी में हैं। भगवत गीता के पूरे 700 श्लोक दीवारों पर लगी संगमरमर की पट्टियों पर प्रदर्शित हैं।
गीता वाटिका का निर्माण 1968 में हनुमान प्रसाद पोद्दार द्वारा कराया गया था। यह मंदिर श्री राधा कृष्णा जी को समर्पित है। यह मंदिर लगभग 5.2 एकड़ में फैला हुआ है और यहाँ "हरे कृष्णा हरे रामा" का निरन्तन जाप चलता रहता है। यह मंदिर नागरा शैली में बना हुआ है। इस मंदिर में राधाष्टमी बहुत ही धूम धाम से मनाई जाती है। दिवाली के बाद का दिन भी बहुत महत्वपूर्ण होता है, जब भक्त यहां अन्नकूट का प्रसाद चढ़ाते हैं और गिरिराज जी महाराज की पूजा करते हैं। यहाँ मंदिर में राधा कृष्णा जी के अलावा श्री राम, माँ सीता, शिव जी , माँ पार्वती, ब्रम्हा जी , माँ सरस्वती, गणेश जी, हनुमान जी के भी दर्शन प्राप्त करते हैं।
इस मंदिर की उत्पत्ति १२वीं शताब्दी में पाल राजवंश के दौरान मानी जाती है। इस मंदिर का मुख्य आकर्षण यहाँ स्थापित "पाल कालीन कसौटी" (काले पत्थर) से बनी भगवान विष्णु की प्रतिमा है। कहा जाता है की यह प्रतिमा दिन में तीन तरह से मुस्कुराती है अर्थात प्रतिमा सुबह दोपहर और शाम को अलग अलग स्वरुप में मुस्कुराती हुई प्रतीत होती है। यह सरकार द्वारा संरक्षित स्मारकों में से एक है। यह मूर्ति असुरन चौराहे पे स्थित तालाब के किनारे एक चरवाहे को मिली थी, तदुपरांत तत्कालीन कलेक्टर ने इस मूर्ति को 15 फ़रवरी 1915 को लखनऊ के म्यूजियम में रखवा दिया। इस प्रतिमा को ब्रिटैन ले जाने की कोशिश की गई थी परन्तु यूनाइटेड किंगडम में केस लड़ने के पश्चात मझौली राज की रानी (श्याम कुमारी) ने इस मूर्ति को प्राप्त किया था। जिन्होंने अपने पति राजा कौसल किशोर की याद में मंदिर बनवा के उसमे इस प्रतिमा को स्थापित कराया। इस मंदिर के चारों कोनो पर जगन्नाथपूरी बद्रीनाथ रामेश्वरम और द्वारका के देवता सस्थापित हैं। दशहरा का पर्व यहाँ धूम धाम से मनाया जाता है।
गोरखपुर के व्यस्ततम बाजार गोलघर क्षेत्र में स्थित यह मंदिर जंगीलाल जायसवाल ने 1968 में बनवाया था। मान्यता है की यहाँ माता काली का मुखड़ा स्वयं धरती से प्रकट हुआ था। जिसकी खबर लोगो को मिली तो वो यहाँ पूजा अर्चना करने लगे। बाद में जब यहाँ मंदिर बना तो यहाँ उसी स्थान पर माँ काली की मूर्ति स्थापित की गई, जिसके नीचे आज भी माँ काली का स्वयंभू मुखड़ा स्थापित है। यहाँ प्रतिदिन श्रद्धालु दर्शनों के लिए आते है। परन्तु नवरात्रो में यहाँ अपार श्रद्धालु दर्शनों के लिए दूर दूर से पहुंचते है। भक्तों के मन में इस मंदिर के प्रति अगाढ़ श्रद्धा है।
मान्यता के अनुसार गोरखपुर के कूड़ाघाट क्षेत्र में स्थित यह मंदिर लगभग 600 साल पुराना है। ऐसी मान्यता है की पूर्व में जब यहाँ जंगल हुआ करता था तब लकड़हारे यहाँ से लकड़ी काट के ले जाया करते थे। एक दिन ऐसे ही एक लकड़हारे ने देखा की उसकी कुल्हाड़ी के प्रहार से एक पत्थर से रक्त निकल रहा है। इसी बीच उस जगह के ज़मीदार गब्बू दास को भगवान शिव का सपना आया और उन्होंने बताया की उस स्थान पर उनका स्वयंभू शिवलिंग है। इसके बाद इसकी सुचना उसने और लोगो को दी और अन्य लोगो ने भी फिर इस पत्थर को जमीन से निकलने के प्रयत्न किये, परन्तु सफल नहीं हुए। शिवलिंग बाहर निकालने के सभी प्रयास असफल हुए अतः उसी स्थान पर पूजा अर्चना प्रारम्भ कर दी गई।आज भी इस शिवलिंग पर कुल्हाड़ी के निशान देखे जा सकते हैं। शिवलिंग के बगल में ही पीपल का एक पेड़ है जो पांच पेड़ो से मिल कर बना है। इस वृक्ष की जड़ो ने शेषनाग का प्रतीकात्मक रूप ले लिया है। शिवलिंग के ऊपर कई बार छत डालने के प्रयास किये गए पर किसी न किसी कारणवश कभी सफल नहीं हो पाए। तबसे यह शिवलिंग इस पीपल की ही छाया में है। सावन में हर शिवालय की तरह यहाँ भी लाखो भक्त जलाभिषेक के लिए आते हैं।
कुसुम्ही जंगल में स्थित बुढ़िया माई मंदिर लगभग 600 वर्ष पुराना है। ऐसी मान्यता है की माता का आशीर्वाद असमय मृत्यु से बचाता है। जैसा की नाम से ही ज्ञात होता है की यह मंदिर एक बूढी माई को समर्पित है। कहा जाता है एक समय जंगल के बीच में बह रहे नाले को पार करके एक बारात जा रही थी, जिसमे एक नर्तकी और एक जोकर शामिल थे। बुढ़िया माई ने बारातियों से नर्तकी का नाच देखने की इच्छा प्रकट की जिसे बारातियो ने मना कर दिया यह कहते हुए की उन्हें देरी हो रही है परन्तु उस जोकर ने बुढ़िया माई को नाच कर दिखाया। तत्पश्चात माई ने जोकर को बारात के साथ नाव पर ना जाने की सलाह दी और अंतर्ध्यान हो गई। कुछ देर बाद नाव बारातियों समेत नाले में डूब गई और सभी की मृत्यु हो गई। जिस जोकर की बुढ़िया माई के कारण प्राण बचे थे उसने बाद में सबको इस बारे में बताया और तभी से नाले के दोनों तरफ बुढ़िया माई की पूजा की जाती है। आज भी वो नाला नाव के द्वारा ही पार किया जाता है। इस मंदिर की बहुत मान्यता है नवरात्रो में यहाँ अत्यधिक भीड़ होती है।
जैसा की नाम से ही ज्ञात होता है, यह मंदिर पंचमुखी हनुमान जी का है। यह मंदिर बरगदवा के पास विस्तार नगर में स्थित है। यहाँ हनुमान जी की ३१ फुट ऊंची मूर्ति स्थापित है। इस मंदिर की स्थापना २०१२ में की गई थी। स्थापना से ही यह मंदिर यहाँ के भक्तों में विख्यात हो गया था और यहाँ लोग अपने पूजा पाठ के लिए आने लगे। अन्य हनुमान जी के मंदिरों की तरह यहाँ भी हर मंगलवार को भक्तों का तांता लगा रहता है।
यह मंदिर महादेव को समर्पित है तथा इसका इतिहास लगभग 6 शताब्दी पुराना है। यह मंदिर अपने आप में बड़ा रहस्यमई है। इस मंदिर के ऊपर आज तक छत नहीं लगी है तथापि महादेव खुले आसमान के नीचे ही विराजित हैं। ऐसा नहीं है की यहाँ कभी छत लगाई नहीं गई वरन कई बार छत लगाने के प्रयास किये गए परन्तु हर बार छत पूर्णतया क्षतिग्रस्त हो जाती। तभी से यहाँ बाबा खुले आसमान के नीचे ही विराजित हैं। जिस वृक्ष के नीचे वे विराजमान है उस वृक्ष पर कई साँप भी रहते हैं एवं सावन के महीने में अपने आप ही वे नीचे महादेव के ऊपर गिर जाते हैं। फिर भी आज तक इन सांपों ने किसी को कुछ भी नुकसान नहीं पहुंचाया है। भौवापार गांव जहां यह मंदिर स्थित है वहां आज तक किसी की असामयिक मृत्यु नहीं हुई है ना ही आज तक कभी किसी घर में कोई भूखा सोया है। ऐसी मान्यता है की यह सब बाबा मुंजेश्वर के आशीर्वाद के कारण ही है। एक बार राजा मुंज के मजदूर इस स्थान की सफाई फावड़े से कर रहे थे तो उनका फावड़ा एक पत्थर से टकराया और उस पत्थर के ऊपर का एक टुकड़ा टूट गया तथा वहां से दूध की एक धारा निकल गई। घबराये हुए मजदूरों ने यह बात राजा को बताई तो राजा ने स्वयं वहां जाके उस पत्थर को हटवाने की कोशिश की पर असफल रहे। उसी रात्रि राजा को बाबा भोले नाथ का स्वप्न आया जिसमें उन्होंने वहां शिवलिंग स्थापित करने को कहा, तदुपरांत राजा ने उस शिवलिंग की स्थापना उसी स्थान पर कराकर एक मंदिर का निर्माण कराया। कालांतर में यह मंदिर राजा मुंज के नाम पर ही मुंजेश्वर नाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। हर शिवालय की तरह ही यहाँ हर सोमवार तथा पुरे सावन में भक्तों का तांता लगा रहता है। यह मंदिर गोरखपुर दोहरीघाट रोड पर गोरखपुर से लगभग 15km की दूरी पर सेवई बाज़ार में भौवापार गांव में स्थित है।