अयोध्या धाम सरयू नदी के तट पर बसा हुआ एक प्राचीन और धार्मिक शहर है। अयोध्या जी को प्राचीन काल में साकेत नाम से भी जाना जाता था। कई पौराणिक ग्रंथो में ये शहर अयोध्या और साकेत दोनों नाम से वर्णित है। पूर्व में अयोध्या कोशल नगर की राजधानी हुआ करती थी। मोक्षदायनी सप्त पुरियों में अयोध्या भक्ति और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। अयोध्या, रघुकुल दीपक, भगवान विष्णु के सातवें अवतार, मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम की जन्मस्थली है। इसके अतिरिक्त यह शहर, जैन ग्रंथानुसार पांच तीर्थंकरों की जन्मस्थली के रूप में भी वर्णित है।पौराणिक बौद्ध और जैन ग्रंथानुसार गौतम बुद्ध जी और महावीर जी भी इस शहर में आये थे और रहे थे। अयोध्या का अर्थ है "अजेय"। अथर्ववेद में "अयोध्या" शब्द का उपयोग "देवताओं के अजेय शहर" के सन्दर्भ में किया गया है।
प्रदेश : उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh -U.P.)
मुख्यमंत्री : योगी आदित्यनाथ ( मार्च 2017 से....)
जैसा की नाम से ही प्रतीत होता है की यह मंदिर वस्तुतः भगवान विष्णु के सातवें अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी की जन्मस्थली है। पूर्व में इस स्थान पर भगवान श्री राम का भव्य मंदिर हुआ करता था परन्तु 1528 - 29 में विधर्मियों ने आक्रमण कर के मंदिर को ध्वस्त कर दिया और यहाँ एक ढांचे का निर्माण किया, जो की 1940 तक मस्जिद-ए-जन्मस्थान के नाम से जानी जाती थी। 6th दिसंबर 1992 को कारसेवकों द्वारा उस ढांचे को ध्वस्त कर दिया गया। तदुपरांत वर्षो तक चले न्यायिक संघर्ष के बाद 9th नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि के पक्ष में निर्णय दिया। इसके फलस्वरूप 5th अगस्त 2020 को इस मंदिर के निर्माण कार्य के लिए भूमि पूजन हुआ और निर्माण प्रारम्भ किया गया और 22 जनवरी 2024 को इस मंदिर का उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने किया। इस मंदिर में हम सबके रामलला 5 वर्षीय रूप में प्रतिष्ठित हैं। रामलला के इस स्वरूप की मूर्ती का निर्माण प्रसिद्ध मूर्तिकार अरुण योगीराज जी ने किया। इस मंदिर की लम्बाई 360 फुट, चौड़ाई 235 फुट एवं ऊंचाई 161 फुट है।
जैसा की नाम से ही ज्ञात होता है यह मंदिर श्री हनुमान जी का है। ऐसा कहा जाता है की हनुमान जी यहाँ राजा के रूप में विराजमान हैं,क्यूंकि जब प्रभु राम गुप्तार घाट से गोलोक के लिए प्रस्थान किये थे तो उन्होंने हनुमान जी को अयोध्या की जिम्मेदारी सौंपी थी, एवं उस आज्ञा का पालन हनुमान जी आज भी कर रहे हैं। यह 10वीं शताब्दी का एक प्रसिद्ध मंदिर है जिसमे हनुमान जी माता अंजनी की गोदी में बैठे हुए हैं। ऐसा कहा जाता है की जब लंका विजय के पश्चात प्रभु राम सभी के साथ अयोध्या लौटे थे तो हनुमान जी को यह स्थान रहने को दिया था इसलिए यह हनुमान जी का घर भी है। ऐसी मान्यता है की अयोध्या में प्रभु राम के दर्शन से पहले हनुमानगढ़ी में हनुमान जी के दर्शन करने होते हैं। इस मंदिर में हनुमान जी के दर्शन केक लिए 76 सीढ़ियां चढ़नी होती है। इस मंदिर की देखभाल रामानंदी संप्रदाय के बैरागी महंत करते हैं। वर्तमान मंदिर का निर्माण लगभग 300 वर्ष पहले स्वामी अभयरामदास के निर्देशानुसार हुआ था।
भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर राम की पैड़ी के पास स्थित है। ऐसा कहा जाता है की एक बार सरयू में स्नान करते समय कुश के हाथ का कड़ा खो गया जो नागराज को प्राप्त हुआ और उन्होंने अपनी पुत्री को सौंप दिया। यह ज्ञात होने पर कुश ने नागराज से कड़ा वापस करने की मांग की परन्तु नागराज ने पुत्री को दिया उपहार वापस लेने में असमर्थता दिखाई और मना कर दिया। नागराज के मना करने के कारण क्रोधित हो कर कुश ने धनुष उठा लिया जिस कारण नागराज के अनुरोध पर भगवान शिव ने प्रकट हो कर कुश के क्रोध को शांत किया एवं नागराज की पुत्री से कुश का विवाह कराया। तत्पश्चात जिस स्थान पर भगवान शिव प्रकट हुए थे वही पर कुश ने भगवान शिव का नागेश्वरनाथ मंदिर बनवाया। मंदिर के वर्तमान स्वरुप का निर्माण 1750 में नवाब सफदरजंग के मंत्री नवल राय ने करवाया था। यहाँ शिवरात्रि का त्यौहार बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है। हर शिवालय की तरह ही यहाँ त्रयोदशी और सोमवार को भक्तों की अत्यधिक भीड़ होती है।
यह भवन त्रेता युग का है। कहा जाता है की जब माता सीता विवाह पश्चात अयोध्या आईं तो माता कैकेयी ने उन्हें यह महल उपहार स्वरुप दिया था। प्रभु श्री राम और माता सीता का यह निवास स्थल था। समय के साथ यह भवन लगभग नष्ट हो गया था। इतिहास में इस भवन का कई बार पुनर्निर्माड़ और नवीनीकरण किया गया। सबसे पहले इसकी मरम्मत एवं पुनर्निर्माड़ द्वापर युग में प्रभु राम के सुपुत्र कुश ने करवाया था। वर्तमान भवन का निर्माण महाराज महेंद्र प्रताप सिंह और उनकी पत्नी महारानी वृषभान ने 1891 में कराया था। ऐसा माना जाता है की कलियुग से पहले भगवान श्री कृष्ण भी यहाँ आये थे। इस मंदिर में प्रभु राम एवं माता सीता की मूर्तियों के 3 जोड़े स्थापित हैं। सबसे बड़ा जोड़ा (कनक बिहारी) महारानी वृषभान ने , उससे छोटा जोड़ा (मानक बिहारी) महाराजा विक्रमादित्य ने स्थापित किया, एवं सबसे छोटे जोड़े (जुगल बिहारी) के लिए कहा जाता है की ये जोड़ा भगवान श्री कृष्ण ने एक प्रभु राम भक्त महिला को दिया था, साथ ही उसे यह भी आदेश दिया की वो इस मूर्ति के जोड़े को अपने साथ ही समाधिस्थ करे क्योंकि भविष्य में इस स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण होना है। कालांतर में महाराजा विक्रमादित्य ने जब मंदिर के निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया तो खुदाई के दौरान उन्हें यह मूर्तियां प्राप्त हुई। वर्तमान में यह तीनों ही जोड़ियां मंदिर में स्थापित है।
त्रेता के ठाकुर मंदिर भागवान श्री राम का ही मंदिर है, क्यूंकि प्रभु राम त्रेता युग के भगवान थे। ऐसी मान्यता भी है की लंका विजय के उपरांत प्रभु ने इसी स्थान पर अश्वमेघ यज्ञ किया था। इस मंदिर में प्रभु राम , माता सीता, लक्ष्मण जी , हनुमान जी की मूर्तियां स्थापित है। ये सभी मुर्तियां काले रंग के एक ही टुकड़े से निर्मित है।इस मंदिर में इसके अलावा भारत जी, शत्रुघ्न जी और ऋषि वसिष्ठ की मूर्तियां भी स्थापित हैं। मंदिर का वर्तमान भवन लगभग 300 वर्ष पुराना है एवं कुल्लू के राजा द्वारा बनवाया गया है। इससे पूर्व में जीर्ण शीर्ण हो चुके इस मंदिर का जीर्णोद्धार रानी अहिल्याबाई होल्कर ने 1784 ईo में कराया था। ऐसी मान्यता है की यहाँ उपलब्ध काले रंग की मूर्तियां राजा विक्रमादित्य के समय की है।