लखनऊ उत्तर प्रदेश की राजधानी है। यह राज्य का सबसे बड़ा शहर भी है। प्राचीन काल में यह अवध क्षेत्र की भी राजधानी थी। एक किंवदंती के अनुसार, इस शहर का नाम श्री राम के भाई लक्ष्मण के नाम पर रखा गया है। माना जाता है कि इस शहर को लक्ष्मण जी ने ही बसाया था। 11वीं शताब्दी तक इस बस्ती को लक्ष्मणपुर और बाद में लखनऊ के नाम से जाना जाने लगा।इतिहास में लखनऊ बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस पर शर्की सल्तनत, मुगलों, अवध के नवाबों और अंग्रेजों ने शासन किया है। यहां बड़ा इमामबाड़ा, छोटा इमामबाड़ा, रूमी दरवाजा, रेजीडेंसी जैसे कई प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक हैं।स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी यह शहर बहुत महत्वपूर्ण था। 1857 (प्रथम स्वतंत्रता संग्राम) के बाद स्वतंत्रता सेनानियों ने अवध प्रांत पर कब्ज़ा कर लिया और अंग्रेजों को नियंत्रण वापस लेने में लगभग 18 महीने लग गए। लखनऊ अपनी चिकनकारी के लिए दुनिया भर में जाना जाता है, और साथ ही साथ अपने दशहरी आमों के लिए भी प्रसिद्ध है
प्रदेश : उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh -U.P.)
मुख्यमंत्री : योगी आदित्यनाथ ( मार्च 2017 से....)
प्रदेश के मुख्यमंत्री : योगी आदित्यनाथ
यह मंदिर बाबा विश्वनाथ अर्थात महादेव को समर्पित है और भारतवर्ष के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यहाँ स्थित शिवलिंग भारत वर्ष के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर माँ गंगा के तट पर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण लगभग 2500 वर्ष पूर्व राजा विक्रमादित्य जी ने करवाया था। यह मंदिर कई बार मुग़ल आक्रांताओं के द्वारा तोड़ा गया परन्तु हर बार टूटने के बाद इसका निर्माण पहले से भी वृहद् तरीके से हुआ। लूटेरे औरंगज़ेब ने 1669 में इस मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया और तदुपरांत यहाँ ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण कराया। यद्यपि वहां मस्जिद का निर्माण करा दिया गया था फिर भी सनातनियों ने वहां जाना और बाबा विश्वनाथ का दर्शन करना बंद नही किया। मंदिर का पुनर्निर्माण रानी अहिल्याबाई होल्कर ने 1780 में कराया था। वर्तमान में केंद्र सरकार ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण कराया जिससे माँ गंगा को मंदिर से जोड़ दिया गया। ऐसी मान्यता है की काशी महादेव के त्रिशूल पे विराजित है और ये धरती के सबसे पुराने शहरों में से एक है। इस मंदिर के दो गुम्बद 1839 से सोने से ढके हुए हैं जो की महाराजा रणजीत सिंह जी द्वारा दिया गया था। यहाँ भक्तों की भीड़ पुरे वर्ष दर्शनों के लिए उमड़ती है।
जैसा की नाम से ही विदित है की यह मंदिर माँ अन्नपूर्णा का है जो की माता पार्वती का ही स्वरुप हैं। यह मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर के निकट ही स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 1729 में मराठा पेशवा बाजी राव द्वारा कराया गया था। इस मंदिर में माँ की दो मूर्तियां विराजित हैं जिसमे से एक सोने की और दूसरी पीतल की है। पीतल वाली मूर्ति के दर्शन पुरे वर्ष होते है परन्तु सोने वाली मूर्ति दर्शनों के लिए सिर्फ अन्नकूट के दिन ही उपलब्ध होती है।
एक मान्यता अनुसार एक बार माँ पार्वती ने शिव जी के तीनो नेत्र ढक दिए जिस फलस्वरूप समस्त जगत में अंधकार छा गया और माता का भी गौरी स्वरुप खो गया। माता को वापस गौरी स्वरुप प्राप्त करने के लिए शिव जी ने उन्हें अन्न दान करने को कहा जिस फलस्वरूप माता ने अन्नपूर्णा स्वरुप लिया और सोने के बर्तनों से यहाँ वाराणसी में अन्न दान किया।
दूसरी मान्यतानुसार एक बार शिव जी ने कहा की अन्न समेत सम्पूर्ण जगत सिर्फ माया है , जिसे सुन कर माँ पार्वती क्रोधित हो गईं और क्रोध में सारा अन्न अदृश्य कर दिया फलस्वरूप समस्त जगत में हाहाकार मच गया। समस्त जगतवासी भूख से तड़पने लगे। तत्पश्चात शिव जी ने भोजन के महत्व को समझा और माता से भोजन माँगने पर माता ने अपने हाथों से उन्हें भोजन दिया एवं वाराणसी में भक्तजनों के लिए रसोई बनाई।