"देवरिया" ज़िला बाबा गोरखनाथ की नगरी गोरखपुर और बौद्ध नगरी कुशीनगर से 50 km की दूरी पे स्थित है। देवरिया के पूरब में बिहार प्रदेश स्थित है। देवरिया बाबा देवरहा की नगरी है । वर्तमान में देवरिया के सांसद माननीय मोहन सिंह जी हैं और माननीय शलभ मणि त्रिपाठी जी विधायक हैं।
प्रदेश : उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh -U.P.)
मुख्यमंत्री : योगी आदित्यनाथ ( मार्च 2017 से....)
जैसा की नाम से ही प्रतीत होता है की यह मंदिर सुभागनाथ बाबा का है जिन्हे लोग ब्रम्ह बाबा के नाम से भी पुकारते हैं। यह पवित्र धाम सलेमपुर तहसील में बिहार बॉर्डर पे स्थिर मेहरौना बाजार के दक्षिण में लगभग 3 KM की दूरी पे सरयू नदी के तट पर स्थित है। प्रख्यात संत देवरहा बाबा भी यहीं के रहने वाले थे। त्रिपाठी के "नाथ" घराने की उत्पत्ति भी इसी स्थान से मानी जाती है। ब्रह्म देव गाँव के सभी लोगो के आराध्य हैं। प्रारम्भ में यहाँ घाघरा नदी के किनारे एक छोटा सा मंदिर हुआ करता था परन्तु कालांतर में नदी के कटाव के कारण ब्रम्ह जी का स्थान उस जगह से, वर्तमान स्थान पर स्थापित किया गया एवं गाँव के लोगों के सहयोग से यहाँ एक भव्य मंदिर स्थापित किया गया। यहाँ ब्रम्ह जी के साथ साथ महादेव, माँ दुर्गा, हनुमान जी, राम दरबार और शनि देव के भी मन्दिर स्थापित किये गए हैं। इस गाँव के दक्षिण में घाघरा और पूर्व में गंडक नदी होने के कारण हर साल बरसात में अगल बगल के गाँव में बाढ़ का खतरा बना रहता है परन्तु बाबा सुभागनाथ के आशीर्वाद से इस गाँव में कभी भी बाढ़ नहीं आती है। ऐसी भी मान्यता है की इस गाँव के किसी भी व्यक्ति के यहाँ किसी भी शुभ कार्य में सबसे पहले ब्रम्ह देव को ही दूध, जल और वस्त्र चढ़ाया जाता है,जिससे वो प्रसन्न होते हैं और कार्य को सफलतापूर्वक पूर्ण कराते हैं।
यह मंदिर माता रानी का है। यह स्थान माता के शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। इस मंदिर के निर्माण के पीछे माता के चमत्कार की कहानी है। कहा जाता है की अंग्रेजी शाशनकाल में जब देवरिया से भटनी के मध्य रेलवे लाइन बिछाने का कार्य चल रहा था तो यहाँ पर मजदूर दिन भर मेहनत करके पटरी बिछाते थे परन्तु जब अगले प्रातः काल वो वापस आ कर देखते तो पटरियां उस जगह से कुछ दुरी पर टूटी फूटी मिलती थी। इसको वहां के स्थानीय निवासियों की शरारत समझ के अंग्रेजी अफ़सर ने रात में वहां पहरा लगाने का विचार किया। उसी रात्रिकाल में अफसर को उस स्थान पर माता की पिंडी होने का स्वप्न आया तदुपरांत अफ़सर ने पटरी को कुछ दूरी पे बेचने का निर्णय लिया जिसके पश्चात पटरी बेचने का कार्य सम्पूर्ण हुआ। अंग्रेजों ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार भी कराया। तभी से माता के भक्त यहाँ अपार संख्या में आते है और माता उन सबकी सच्चे मन से मांगी गई सभी शुभेच्छाएं पूर्ण करती हैं। नवरात्रों पे यहाँ भक्तो का तांता ही लगा रहता है तथा दूर दूर से भक्त यहाँ दर्शनों के लिए आते हैं।
देवरहा बाबा का आश्रम जिले के मइल गांव सरयू नदी किनारे स्थित है। अब इस आश्रम का नवीनीकरण किया जा रहा है। ऐसा कहा जाता है की बाबा के जन्म के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं है इसलिए बाबा की उम्र का भी किसी को कुछ नहीं पता। कई लोग बाबा की उम्र सैकड़ों वर्षो में बताते है। बाबा 10-12 फुट ऊँचे लकड़ी की मचान पर ही रहा करते थे। हालाँकि देवरहा बाबा ने अपनी चमत्कारी शक्तियों या सिध्धियों का दावा कभी नहीं किया परन्तु उनकी सिद्धि और प्रसिद्धि का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है की देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद से लेकर महामना मदन मोहन मालवीय, इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी, अटल बिहारी बाजपेयी, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव इत्यादि लोग समय समय पर बाबा का आशीर्वाद प्राप्त करने आते थे। यह आश्रम बाबा के चमत्कारों का गवाह रहा है और आज भी यहाँ बाबा द्वारा लगाए गए पारिजात के वृक्ष को छु भर लेने से कहते है की सारी थकान चली जाती है।
हनुमान मंदिर देवरिया के राघव नगर में स्थित है और यह देवरिया के सिद्ध स्थानों में से एक है। हर मंगलवार शनिवार को यहाँ भक्तों की अपार भीड़ दर्शनों के लिए एकत्र होती है। ऐसा माना जाता है की यह मंदिर लगभग 300 वर्ष पुराना है। यह मंदिर पहले छोटी झोपडी के रूप में था जिसे बाद में देवरहा बाबा ने एक सुन्दर मंदिर के रूप में परिवर्तित किया। मंदिर के बगल में ही एक सुन्दर तालाब भी है। ऐसी भी मान्यता है की यहाँ हनुमान जी के दर्शन करके सच्चे मन से मांगी गई सभी शुभेच्छाएं पूर्ण होती हैं, इसीलिए इस मंदिर को मनोकामना पूर्ण हनुमान मंदिर भी कहते हैं।
यह मंदिर शिव जी को समर्पित है। यह मंदिर देवरिया के रुद्रपुर में लगभग 20 एकड़ में स्थित है। इस मंदिर के बारे में कई मान्यताएं प्रचलित है जिनमे से एक के अनुसार इस मंदिर की स्थापना रुद्रपुर महाराज ने कराया था और महाराज स्वयं यहाँ पूजा किया करते थे। बाबा दुग्धेश्वर नाथ के नीसक पत्थर से निर्मित शिवलिंग को महाकालेश्वर उज्जैन का उप शिवलिंग माना जाता है। इस मंदिर की महत्ता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है की इस जगह को उप काशी के नाम से भी पुकारा जाता है। हिंदी माह के अनुसार हर 4 वर्ष पर लगने वाले अधिमास में इस स्थान की महत्ता बहुत बढ़ जाती है। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी अपनी यात्रा में इस मंदिर का वर्णन किया है। वैसे तो पुरे वर्ष शिवभक्त यहाँ जलाभिषेक करने आते है परन्तु सावन के महीने में तथा फागुन के महीने में शिवरात्रि के समय यहाँ अपार भीड़ जलाभिषेक के लिए आती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह भूमि दधीचि और गर्ग ऋषियों की तपोभूमि रही है। ऐसा कहा जाता है की यह मंदिर ईशा से 332 वर्ष पूर्व हुआ था। तब राजा अयोध्या से अपने कुछ लोगों के साथ इधर से जा रहे थे तो उन्होंने इसी स्थान पर अपना डेरा डाला था। रात्रि में पहरा दे रहे सैनिकों ने ब्रम्हबेला में देखा की एक स्थान विशेष पर एक गाय खड़ी है तथा उसकी दुग्ध की धार स्वतः ही वह गिर रही है। सैनिक के द्वारा यह सुनाने पर राजा ने उस स्थान की सफाई कराइ तथा शिवलिंग दिखने पर उसकी खुदाई करने लगे परन्तु जैसे जैसे उसकी खुदाई होती शिवलिंग और नीचे धंसता जाता था अतः खुदाई रुकवा दी गई तथा उसी स्थान पर ब्राह्मणो के द्वारा रुद्राभिषेक कराया गया। दुग्ध की धार स्वतः गिरने के कारण यहाँ महादेव का नाम दुग्धेश्वर नाथ रखा गया।