बस्ती शहर घाघरा नदी के तट पर स्थित है. पूर्व में इसका नाम वैशिष्ठी हुआ करता था, जोकि रघुकुल के गुरुदेव ऋषि वशिष्ठ के नाम पर पड़ा था। उस समय ऋषि वसिष्ठ का आश्रम यहीं हुआ करता था जहाँ प्रभु राम अपने भाइयों समेत शिक्षा ग्रहण करने के लिए आये थे। कपिलवस्तु और श्रावस्ती से निकट होने के कारण पूर्व में यह शहर बौद्धों का मुख्य शहर हुआ करता था।
प्रदेश : उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh -U.P.)
मुख्यमंत्री : योगी आदित्यनाथ ( मार्च 2017 से....)
प्रदेश के मुख्यमंत्री : योगी आदित्यनाथ
यह बस्ती का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है तथा यह कुआनो नदी के तट पर स्थित है। यह भगवान शिव का मंदिर है। ऐसा कहा जाता है की इस मंदिर की स्थापना स्वयं रावण ने की थी। इस शिवलिंग और मंदिर का जिक्र शिव महापुराण में भी है। ऐसा भी कहा जाता है की युधिष्ठिर ने अपने अज्ञातवाश के दौरान यहाँ पूजा अर्चना की थी। वैसे तो हर शिवालय की तरह यहाँ भी भक्तगण पुरे वर्ष जल चढाने के लिए आते है परन्तु सोमवार और सावन के माह में यहाँ अत्यंत भीड़ हो जाती है। ऐसा भी कहा जाता है की शिवलिंग को कोई भी भक्त अपने दोनों हाथों से घेर कर नहीं पकड़ सकता है। ऐसा कहा जाता है की जब अंग्रेजों ने इस मंदिर को अपने अधीन करने की कोशिश करी तो यहाँ प्राकृतिक आपदाओं के कारण वो कभी सफल नहीं हो पाए। ऐसी भी मान्यता है की एक बार कुछ चोर इस शिवलिंग को चुराने आये परन्तु जब उन्होंने इसे चुराने के लिए खुदाई प्रारम्भ की तो उन्हें इसका कही छोर ही नहीं मिला। तत्पश्चात वो चोर शिवलिंग को छोर के भागने लगे उनकी गाडी का पहिया वह फंस गया और पत्थर में बदल गया। यह पत्थर अभी भी देखा जा सकता है।
मखौडा धाम बस्ती जिले की हर्रैया तहसील की सबसे पुरानी जगहों में से एक है। यह धाम प्रभु श्री राम को समर्पित है। मख का अर्थ होता है यज्ञ और इसी कारण से इस जगह का नाम मखौडा धाम पड़ा। मान्यता है की राजा दशरथ ने ऋषि वसिष्ठ के कहने पर ऋषि ऋष्यश्रृंग की सहायता से यही पर "पुत्रकामेष्ठि" यज्ञ किया था। राजा दशरथ और रानी कौशल्या की पुत्री शांता थी जो की ऋषि ऋष्यश्रृंग की पत्नी थी। यज्ञ की पूर्ण होने पर अग्निकुंड से अग्नि देव प्रकट हुए और राजा दशरथ को खीर का एक कटोरा दिया और खीर को सभी रानियों में बांटने को कहा। जिसे ग्रहण करने के पश्चात तीनों रानियों के पुत्र हुए। तभी से बैसाख माह के अक्षय तृतीया से जानकी नवमी तक पुत्र कामेष्ठि यज्ञ की परम्परा आज भी जारी है। चैत्र माह के प्रथम दिन यहाँ मेला लगता है जिस दिन दूर दूर से भक्त यहाँ दर्शन के लिए आते हैं। यह धाम मनोरमा नदी के तट पर स्थित है। ऐसा कहा जाता है की यज्ञ के दौरान ऋषि ऋष्यश्रृंग ने सरस्वती नदी का आह्वान किया था और वही नदी आज मनोरमा नाम से जानी जाती है। पुराणों में मनोरमा नदी को सरस्वती की सातवीं धारा भी कहा गया है। ऐसी भी कहा जाता है की यहाँ मंदिर से एक सुरंग सीधे अयोध्या जाती है हालाँकि वर्तमान उस सुरंग का द्वार बंद कर दिया गया है। अयोध्या की प्रसिद्ध 84 कोशी यात्रा यहीं से प्रारम्भ होती है, जिसमे देश विदेश से लोग शामिल होने के लिए आते है।
इस मंदिर का इतिहास लगभग 300 वर्ष पुराना है। कहा जाता है की एक समय यह जगह बहुत उजाड़ हुआ करती थी। फिर वन विभाग वालों ने यहाँ वृक्षारोपण कराया और इस जगह को हरा भरा बनाया और माता के लिए एक चबूतरे का निर्माण भी कराया। ऐसा कहा जाता है की लगभग 200 वर्ष पूर्व अंग्रेज यहाँ से रेलवे लाइन बिछवा रहे थे परन्तु किसी न किसी कारणवश उनका यह कार्य पूर्ण नहीं हो पा रहा था। ऐसा कहा जाता है की यह समय माता के प्रताप के कारण ही हो रहा था। तब वहां काम कर रहे मज़दूरों ने माता के बारे में बता के रेलवे लाइन को वहां से हटा के बिछाने को कहा और ऐसा करने पर रेलवे लाइन का कार्य बिना किसी रुकावट के पूर्ण हो गया। ऐसा भी माना जाता है की यहाँ सच्चे मन से मांगी गई मुरादें पूर्ण होती है। यहाँ कई भक्तों ने मुरादें पूर्ण होने पर छोटी बड़ी कई प्रतिमाएं स्थापित की हैं। आज यहाँ सैकड़ो की संख्या में छोटी बड़ी प्रतिमाएं स्थापित हैं। यह मंदिर रवई नदी के तट पर स्थित है परन्तु ऐसी मान्यता है की माता के प्रताप के कारण इस नदी का कटाव कभी इस मंदिर की तरफ नहीं हुआ है।